Thursday, March 5, 2009


कल रात मेरे घर आई थी जिंदगी , दुखों से पेरशान थी जिंदगी


किया था घायल उसे अपनोने , अपना सब कुछ लुटाकर आई थी जिंदगी


लुटा था उसको भ्रष्टाचार के दानव ने , सताया था उसे भाई भतीजावाद ने


था लहूलुहान शरीर उसका, कानून के जखम लिए आई थी जिंदगी


प्रजातंत्र की सुना पा रही थी वो दास्ताँ , आरक्षण से डरकर भागी थी जिंदगी


बाहुबली राजनीती से हो परेशांन, थी सहारा ढूंढ़रही जिंदगी


सुनाने आतंकवाद का किस्सा , शब्द ढूंढ़ रही थी जिंदगी


कल रात मेरे घर आई थी जिंदगी।



कितनी है ये अजब बात