कल रात मेरे घर आई थी जिंदगी , दुखों से पेरशान थी जिंदगी
किया था घायल उसे अपनोने , अपना सब कुछ लुटाकर आई थी जिंदगी
लुटा था उसको भ्रष्टाचार के दानव ने , सताया था उसे भाई भतीजावाद ने
था लहूलुहान शरीर उसका, कानून के जखम लिए आई थी जिंदगी।
प्रजातंत्र की न सुना पा रही थी वो दास्ताँ , आरक्षण से डरकर भागी थी जिंदगी
बाहुबली राजनीती से हो परेशांन, थी सहारा ढूंढ़रही जिंदगी
सुनाने आतंकवाद का किस्सा , शब्द ढूंढ़ रही थी जिंदगी
कल रात मेरे घर आई थी जिंदगी।
कितनी है ये अजब बात